मुंबई उच्च न्यायालय ने फिल्म ‘हमारे बारह’ को क्लीन चिट दे दी है और स्पष्ट किया है कि यह फिल्म मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि महिलाओं के उत्थान पर आधारित है। अदालत ने इस मामले में कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।
फिल्म के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए अदालत ने कहा कि-
“यह फिल्म महिलाओं के उत्थान के लिए है। फिल्म में एक मौलाना को कुरान का गलत अर्थ निकालते हुए दिखाया गया है और एक मुस्लिम व्यक्ति इसका विरोध करता है। यह दर्शाता है कि लोगों को सोचना चाहिए और ऐसे मौलानों का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि फिल्म में कोई ऐसी बात नहीं है, जो हिंसा भड़काए या समुदायों के बीच नफरत फैलाए। न्यायमूर्ति भरत देशपांडे और फिरदौस पूनावाला की खंडपीठ ने यह भी कहा कि अगर उन्हें ऐसा कुछ भी लगता तो वे सबसे पहले इसका विरोध करते।
ये भी पढ़ें राजस्थान में धर्मांतरण पर क्या होगा बड़ा फैसला? जानिए अब…
पिछले हफ्ते, उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि फिल्म मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है और कुरान के तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करती है।
अदालत ने शुरू में फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी थी, लेकिन निर्माता ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा निर्देशित आपत्तिजनक हिस्सों को हटा देने का आश्वासन दिया, जिसके बाद अदालत ने फिल्म की रिलीज को अनुमति दे दी।
अदालत ने क्या कहा?
“पहले ट्रेलर में कुछ आपत्तिजनक बातें थीं, लेकिन वे हटा दी गई हैं। अब कोई भी आपत्तिजनक दृश्य फिल्म में नहीं है,” न्यायमूर्ति बी पी कोलाबावाला और फिर्दोश पूनावाला ने कहा। इसके साथ ही अदालत ने फिल्म निर्माताओं को चेतावनी दी कि वे अपने रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी धर्म की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाएं।
ये भी पढ़ें केरल के मुख्यमंत्री पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, जानिए सच्चाई…
फिल्म की रिलीज के मामले में अदालत ने क्या कहा?
“ट्रेलर की रिलीज के वक्त कुछ उल्लंघन हुआ था, इसलिए आपको याचिकाकर्ता की पसंदीदा चैरिटी को कुछ राशि दान करनी होगी। इस मुकदमे ने फिल्म को अनपेक्षित प्रचार दिया है,” अदालत ने कहा।
अदालत ने फिल्म निर्माताओं को चेतावनी दी कि वे अपने संवादों और दृश्यों में सतर्क रहें और किसी भी धर्म की भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं। अदालत ने यह भी कहा, “वे (मुस्लिम) हमारे देश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म हैं।”