क्या कभी सोचा है कि बिना हत्या किए भी मिल सकती है उम्रभर की सजा? जानिए धारा 105 के बारे में!

भारतीय न्याय संहिता की धारा 105: वह आपराधिक मानव वध जो हत्या के बराबर नहीं है (Punishment for Culpable Homicide not amounting to Murder)

भारतीय न्याय संहिता (Indian Penal Code, IPC) की धारा 105, आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) से संबंधित है, लेकिन यह हत्या (Murder) के मुकाबले हल्का अपराध है। धारा 105 के तहत, किसी व्यक्ति द्वारा की गई आपराधिक मानव वध की घटनाएं हत्या के रूप में नहीं मानी जातीं, लेकिन इसके बावजूद यह एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए सजा का प्रावधान किया गया है। इस धारा के अंतर्गत, यदि किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति की हत्या की, लेकिन उसके इरादे में हत्या करने का उद्देश्य नहीं था, तो उसे इस धारा के तहत दंडित किया जाता है।

धारा 105 का उद्देश्य और परिभाषा

भारतीय न्याय संहिता की धारा 105, उन मामलों को कवर करती है जहाँ कोई व्यक्ति अपने कार्यों से किसी की हत्या करता है, लेकिन यह हत्या के दर्जे में नहीं आती, यानी इसका उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं था। यह धारा मुख्य रूप से उन मामलों में लागू होती है जहाँ अपराधी का इरादा हत्या का नहीं था, लेकिन उसकी कार्रवाई से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई।

इस धारा में यह स्पष्ट किया जाता है कि जब कोई व्यक्ति अपनी जान बचाने के लिए, किसी के खिलाफ बल प्रयोग करता है, और इस बल प्रयोग के परिणामस्वरूप किसी और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो यह हत्या नहीं मानी जाएगी। इसके बावजूद आरोपी को “Culpable Homicide” के तहत दंडित किया जाएगा।

धारा 105 के तहत सजा का निर्धारण

धारा 105 के तहत, हत्या के मामलों में अभियुक्त को जितनी सजा मिलती है, उससे हल्की सजा यहां दी जाती है। इसमें दो प्रकार के दंड का प्रावधान है:

  1. आजीवन कारावास (Life Imprisonment): यदि दोषी को किसी व्यक्ति की मृत्यु का दोषी पाया जाता है, तो उसे उम्रभर की सजा दी जा सकती है।
  2. कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment): इसमें आरोपी को कठोर कारावास की सजा भी दी जा सकती है, जो सामान्य रूप से अधिकतम 10 साल तक हो सकती है।

केस लॉ (प्रमुख मामले)

  1. राजीव कुमार बनाम राज्य (Rajiv Kumar vs State): इस मामले में आरोपी ने अपनी जान की रक्षा करने के लिए प्रतिवादी पर हमला किया था, लेकिन हमला गलत दिशा में हुआ और एक अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो गई। अदालत ने इसे हत्या के बजाय “Culpable Homicide not amounting to Murder” के अंतर्गत लिया और आरोपी को सजा सुनाई।
  2. शिवराम बनाम राज्य (Shivram vs State): इस मामले में आरोपी ने गुस्से में आकर किसी व्यक्ति पर हमला किया, लेकिन उसका उद्देश्य हत्या करना नहीं था। हालांकि, हमले के परिणामस्वरूप उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई। अदालत ने इसे धारा 105 के तहत अपराध माना और आरोपी को कारावास की सजा सुनाई।
  3. रघुनाथ बनाम राज्य (Raghunath vs State): इसमें आरोपी ने अपनी पत्नी के साथ विवाद के दौरान हमला किया था, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। अदालत ने इसे हत्या की बजाय “Culpable Homicide not amounting to Murder” माना और आरोपी को सजा सुनाई।

निष्कर्ष

भारतीय न्याय संहिता की धारा 105 उन मामलों को कवर करती है जहाँ किसी ने किसी की हत्या का इरादा नहीं किया, लेकिन उसके कारण किसी की मृत्यु हो जाती है। इसे आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) माना जाता है, लेकिन हत्या (Murder) के रूप में नहीं। इस धारा के तहत सजा का निर्धारण करते वक्त अदालत आरोपी के इरादे और अपराध की परिस्थितियों का विश्लेषण करती है।

धारा 105 के अंतर्गत दोषी व्यक्ति को उम्रभर की सजा या कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है, जो कि उसकी कार्रवाई और मंशा के आधार पर निर्भर करती है।

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