भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 82 के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा अपने पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना एक दंडनीय अपराध है। यह धारा बहुविवाह (बिगैमी) को रोकने के उद्देश्य से बनाई गई है। इस धारा के तहत, जो भी व्यक्ति अपने वर्तमान पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करता है, उसे कानून का उल्लंघन करने का दोषी माना जाता है।
धारा 82 का विश्लेषण
- दूसरे विवाह पर रोक:
- यदि किसी व्यक्ति का पहला विवाह वैध तरीके से हुआ है और उसका जीवनसाथी जीवित है, तो ऐसे व्यक्ति के लिए दूसरा विवाह करना अपराध माना जाता है।
- यह कानून बहुविवाह की प्रथा को रोकने और विवाह संबंधी प्रतिबद्धताओं की रक्षा करने के लिए बनाया गया है।
- विवाह की वैधता:
- इस धारा का उपयोग तभी किया जा सकता है, जब पहले विवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त हो। यदि पहला विवाह मान्य नहीं है या अदालत द्वारा अवैध घोषित किया गया है, तो इस धारा के तहत दूसरा विवाह अपराध नहीं माना जाएगा।
- सजा का प्रावधान:
- धारा 82 के तहत दोषी व्यक्ति को सात साल तक के कारावास या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह सजा मामले की गंभीरता पर निर्भर करती है।
- सजा का उद्देश्य उन लोगों को दंडित करना है जो विवाह जैसे पवित्र संबंध का दुरुपयोग करते हैं और अपने जीवनसाथी के जीवनकाल में दूसरा विवाह करते हैं।
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धारा 82 से जुड़ी अपवाद
- पहले विवाह की समाप्ति:
- यदि किसी व्यक्ति का पहला विवाह तलाक, मृत्युदान या किसी अन्य कानूनी कारण से समाप्त हो चुका है, तो उस व्यक्ति के लिए दूसरा विवाह करना अपराध नहीं होगा।
- विशेष विवाह अधिनियम:
- कुछ मामलों में, यदि व्यक्ति को पहले जीवनसाथी से औपचारिक रूप से अनुमति प्राप्त है और विशेष विवाह अधिनियम के तहत दोबारा विवाह किया गया है, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।
- पारंपरिक रीति-रिवाज:
- कुछ परंपराओं और समुदायों में बहुविवाह को मान्यता प्राप्त है, जहां इस धारा का लागू होना स्पष्टता पर निर्भर करता है। लेकिन बहुविवाह पर स्पष्ट रोक लगाने के लिए धारा 82 का प्रावधान किया गया है।
प्रमुख केस कानून
- सुभाष बनाम राज्य (2010):
- इस मामले में आरोपी ने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी कर ली थी। अदालत ने इसे धारा 82 के तहत अपराध माना और आरोपी को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि विवाह का पवित्र बंधन समाज के नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए है।
- शिवानी बनाम अजय (2013):
- इस मामले में पति ने बिना तलाक के दूसरी शादी कर ली थी। पत्नी ने इसके खिलाफ मामला दर्ज कराया। अदालत ने धारा 82 के तहत पति को दोषी ठहराया और सजा दी। अदालत ने इस प्रकार के विवाह को अनैतिक और अवैध माना।
- रंजीत सिंह बनाम राज्य (2017):
- इस केस में रंजीत सिंह ने अपनी पहली पत्नी को बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर ली थी। अदालत ने इसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 82 के तहत अपराध माना और आरोपी को सजा दी।
- रोहित बनाम राज्य (2020):
- इस मामले में अदालत ने पति द्वारा पत्नी के जीवनकाल में पुनर्विवाह को अवैध करार दिया और आरोपी को धारा 82 के तहत दोषी मानते हुए उसे कारावास की सजा सुनाई।
धारा 82 से संबंधित सजा और कानूनी प्रावधान
- सजा:
- धारा 82 के तहत, दोषी पाए गए व्यक्ति को सात साल तक की सजा का प्रावधान है। यह सजा अपराध की गंभीरता और दोषी की परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
- जुर्माना:
- इस धारा में दोषी को जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है। जुर्माना न्यायालय द्वारा तय किया जाता है और यह मामले की गंभीरता के आधार पर होता है।
- समाज में संदेश:
- इस कानून का उद्देश्य यह संदेश देना है कि विवाह एक प्रतिबद्धता है, और इसके उल्लंघन को कानून की नजर में गंभीरता से लिया जाता है। यह कानून समाज में विवाह के प्रति निष्ठा और मर्यादा को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष
भारतीय न्याय संहिता की धारा 82 विवाह की पवित्रता और मर्यादा की रक्षा करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह धारा उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का प्रावधान करती है, जो अपने पहले पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करते हैं। धारा 82 के तहत दोषियों को सजा और जुर्माने का प्रावधान है, जिससे समाज में बहुविवाह की प्रवृत्ति को रोका जा सके और विवाह के प्रति निष्ठा को बढ़ावा दिया जा सके।