क्या मीडिया को पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करने का अधिकार है? जानिए भारतीय न्याय संहिता की धारा 72 में क्या है?

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 72 का उद्देश्य कुछ गंभीर अपराधों के मामलों में पीड़िता की पहचान को गुप्त रखना है। यह विशेष रूप से उन अपराधों के मामलों में लागू होती है जिनमें पीड़िता का शारीरिक या मानसिक शोषण किया गया होता है, जैसे कि बलात्कार, छेड़छाड़, या अन्य यौन अपराध। इस धारा के तहत, पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक रूप से उजागर करना प्रतिबंधित किया गया है ताकि उसकी सुरक्षा, गरिमा और सम्मान की रक्षा की जा सके।

धारा 72 का विश्लेषण

  1. पीड़िता की पहचान का खुलासा नहीं कर सकते:
  • धारा 72 के तहत, यदि किसी व्यक्ति ने बलात्कार, छेड़छाड़ या अन्य यौन अपराधों का शिकार किया है, तो उस पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। मीडिया, पत्रकार, या कोई अन्य व्यक्ति उसके बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते। यदि ऐसा किया जाता है, तो यह कानून का उल्लंघन होगा।
  1. विधिक प्रावधान:
  • इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़िता की पहचान उजागर करने से उसे मानसिक और सामाजिक कष्ट न हो। यदि पीड़िता की पहचान सार्वजनिक होती है, तो उसका जीवन और भी मुश्किल हो सकता है, क्योंकि समाज में उसे घृणा, शर्मिंदगी और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है।
  1. सजा का प्रावधान:
  • यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाही से पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करता है, तो उसे सजा का सामना करना पड़ सकता है। यह सजा जुर्माना, कारावास या दोनों रूपों में हो सकती है, जो अपराध की गंभीरता पर निर्भर करेगा।
  1. धारा का महत्व:
  • यह धारा महिला सुरक्षा को प्राथमिकता देती है और यह सुनिश्चित करती है कि पीड़िता को अपराध के बाद मानसिक शांति और सम्मान मिले। यह महिला को यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों के बाद समाज में मानसिक रूप से पुनः स्थापित होने का अवसर प्रदान करती है।

प्रमुख केस कानून

  1. निर्भया कांड (2012):
  • निर्भया कांड में एक 23 वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। इस घटना के बाद, मीडिया ने पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक करने की कोशिश की थी। हालांकि, धारा 72 के तहत, पीड़िता की पहचान को गुप्त रखने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने मीडिया को निर्देश दिया कि वे पीड़िता की पहचान उजागर न करें, जिससे उसकी गरिमा और सम्मान की रक्षा की जा सके। इस मामले ने मीडिया की जिम्मेदारी को लेकर महत्वपूर्ण विचार विमर्श को जन्म दिया।
  1. आशा बनाम राज्य (2017):
  • इस मामले में, एक महिला ने बलात्कार के अपराध में अपने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। बाद में, एक अखबार ने उसकी पहचान को प्रकाशित कर दिया। कोर्ट ने इस मामले में धारा 72 के उल्लंघन को माना और अखबार के संपादक और रिपोर्टर को सजा दी। इस मामले ने स्पष्ट किया कि पीड़िता की पहचान को उजागर करना कानूनन अपराध है।
  1. जेनिफर बनाम राज्य (2015):
  • इस केस में एक महिला को मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया गया था, और उसके बाद मीडिया ने उसकी पहचान प्रकाशित कर दी। महिला ने कोर्ट में शिकायत की कि उसकी पहचान उजागर करने से उसके जीवन में और भी कठिनाइयां आ गईं। कोर्ट ने इस मामले में धारा 72 के तहत दोषियों को दंडित किया और पीड़िता की पहचान गुप्त रखने के महत्व पर जोर दिया।
  1. साक्षी बनाम राज्य (2019):
  • इस मामले में, बलात्कार के एक मामले में पीड़िता की पहचान को मीडिया ने उजागर किया था। कोर्ट ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई और इस घटना को धारा 72 का उल्लंघन माना। कोर्ट ने आदेश दिया कि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो और पीड़िता की पहचान को पूरी तरह से गुप्त रखा जाए।

धारा 72 से संबंधित सजा और कानूनी प्रावधान

  1. सजा का प्रावधान:
  • यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर पीड़िता की पहचान उजागर करता है, तो उसे जुर्माना और/या कारावास की सजा दी जा सकती है। इस सजा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़िता को किसी भी प्रकार का मानसिक कष्ट न हो और उसकी गरिमा बनाए रखी जाए।
  1. मीडिया और पत्रकारिता:
  • मीडिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में यह एक गंभीर जिम्मेदारी बन जाती है कि वे यौन अपराधों के मामलों में पीड़िता की पहचान को गुप्त रखें। इसके उल्लंघन पर उन्हें दंड का सामना करना पड़ सकता है।
  1. समाज में जागरूकता:
  • इस धारा का उद्देश्य समाज में पीड़िता के प्रति सहानुभूति और सम्मान बढ़ाना है। यदि पीड़िता की पहचान सार्वजनिक होती है, तो इससे समाज में उसे लेकर भेदभाव हो सकता है। इसलिए यह धारा महिलाओं और अन्य पीड़ितों की मानसिक शांति और पुनर्वास के लिए महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

भारतीय न्याय संहिता की धारा 72, यौन अपराधों के मामलों में पीड़िता की पहचान को उजागर करने से रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह कानून महिला की गरिमा, सम्मान और मानसिक शांति की रक्षा करता है। मीडिया और अन्य व्यक्ति जो पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करते हैं, उन्हें इस धारा के तहत दंडित किया जा सकता है। इसके माध्यम से समाज में पीड़िता की सम्मानजनक स्थिति को बनाए रखा जाता है, जिससे उसे अपराध के बाद पुनर्वास में मदद मिलती है।

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