नाबालिग भांजे की रिहाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचीं चाची, पुणे Porsche हादसे का मामला गरमाया

नाबालिग भांजे की रिहाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचीं चाची, पुणे Porsche हादसे का मामला गरमाया

पिछले महीने पुणे में हुए हाई-प्रोफाइल Porsche हादसे के मामले में एक नया मोड़ सामने आया है। इस हादसे में कथित रूप से नाबालिग लड़के द्वारा चलाए जा रहे Porsche कार ने एक मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी, जिसके चलते दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की मौत हो गई थी। अब नाबालिग आरोपी की चाची ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया है और अपने भांजे की रिहाई की मांग की है।

आरोप: गैरकानूनी हिरासत

आरोपी की चाची द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि किशोर को “गैरकानूनी और मनमाने” तरीके से हिरासत में लिया गया है। याचिका में कहा गया है कि किशोर को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) द्वारा निगरानी गृह में भेजा गया था, जबकि हिरासत का आदेश वैध नहीं है। याचिका में यह भी कहा गया है कि मीडिया रिपोर्टों के दबाव में जेजेबी को प्रभावित किया गया है।

याचिका में जमानत याचिका दायर करने की अनुमति देने और किशोर को हिरासत से रिहा करने की मांग की गई है। साथ ही, मजिस्ट्रेट और जेजेबी द्वारा पारित आदेशों को भी रद्द करने की मांग की गई है।

हाईकोर्ट में सुनवाई

मामले की सुनवाई बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने की, जिसमें जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे शामिल थीं। सरकारी वकील हितेन वेणेगांवकर ने जेजेबी का पक्ष रखते हुए याचिका की सुनवाई पर सवाल उठाया। उनका कहना था कि किशोर को कानूनी आदेश के तहत निगरानी गृह में भेजा गया था।

वहीं, नाबालिग के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद पोंडा ने तत्काल रिहाई की मांग करते हुए कहा कि किशोर को हिरासत में यातनाएं दी जा रही हैं। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि वह याचिका में संशोधन करने का समय दे ताकि 13 जून को पारित आदेश को भी इसमें शामिल किया जा सके, जिसके तहत किशोर की हिरासत अवधि को बढ़ा दिया गया था।

फैसला लंबित

अदालत ने पोंडा को याचिका में संशोधन करने का समय दिया, लेकिन तत्काल रिहाई की मांग खारिज कर दी। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 20 जून को निर्धारित की।

मीडिया का दबाव बनाम कानून का पालन

यह मामला किशोर न्याय प्रणाली और मीडिया ट्रायल के बीच संतुलन कायम करने की चुनौती को उजागर करता है। एक तरफ किशोर न्याय अधिनियम किशोर आरोपियों के अधिकारों की रक्षा करता है, वहीं दूसरी तरफ मीडिया का दबाव पुलिस और अदालतों को जल्दबाजी में फैसले लेने के लिए प्रेरित कर सकता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट का आगामी फैसला इस मामले में काफी अहम होगा। यह फैसला न केवल किशोर आरोपी के भविष्य को तय करेगा बल्कि किशोर न्याय प्रणाली के लिए भी एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा।

मामले के कुछ अहम बिंदु:

  • मई 2024 में पुणे के कल्याणी नगर इलाके में एक नाबालिग द्वारा कथित रूप से चलाए जा रहे Porsche ने एक मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी।
  • हादसे में दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की मौत हो गई थी।
  • नाबालिग आरोपी को हिरासत में लिया गया और किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) द्वारा निगरानी गृह भेजा गया।
  • आरोपी की चाची ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया कि हिरासत गैरकानूनी है और मीडिया रिपोर्टों के दबाव में लिया गया फैसला है।
  • याचिका में जमानत याचिका दायर करने की अनुमति और किशोर की रिहाई की मांग की गई।
  • हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने जेजेबी का पक्ष रखते हुए कहा कि हिरासत कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई है।
  • किशोर के वकील ने तत्काल रिहाई की मांग करते हुए हिरासत में यातना के आरोप लगाए।
  • हाईकोर्ट ने याचिका में संशोधन का समय दिया लेकिन तत्काल रिहाई की मांग खारिज कर दी।
  • मामले की अगली सुनवाई 20 जून को निर्धारित की गई।

    आने वाले दिनों में क्या हो सकता है?

    • बॉम्बे हाईकोर्ट का आगामी फैसला इस केस का रुख तय करेगा।
    • फैसला में किशोर की रिहाई या हिरासत जारी रखने पर निर्णय लिया जाएगा।
    • कोर्ट किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों और पुलिस जांच प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाएगा।
    • अगर हाईकोर्ट किशोर की हिरासत को सही ठहराता है, तो यह किशोर न्याय प्रणाली की प्रक्रियाओं को मजबूत करेगा।
    • वहीं, अगर कोर्ट रिहाई का आदेश देता है, तो ये किशोरों के अधिकारों और मीडिया ट्रायल के खतरों पर बल देगा।

     

    इस मामले का सामाजिक प्रभाव

    यह मामला किशोर अपराध, मीडिया की भूमिका और किशोर न्याय प्रणाली की कार्यप्रणाली पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा छेड़ सकता है।

    • किशोर अपराध: ये मामला किशोर अपराधों से निपटने के लिए मजबूत कानूनों और जागरुकता की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
    • मीडिया की भूमिका: मीडिया ट्रायल और कानूनी प्रक्रिया में हस्तक्षेप की आशंकाओं को लेकर बहस छिड़ सकती है।
    • किशोर न्याय प्रणाली: किशोर न्याय प्रणाली की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर सवाल उठाए जा सकते हैं।

    इस पूरे मामले में कानून, न्यायपालिका और मीडिया तीनों को ही संतुलन बनाकर चलना होगा ताकि एक तरफ पीड़ितों को न्याय मिल सके और दूसरी तरफ किशोर आरोपी के अधिकारों का हनन न हो।

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