लिव-इन रिलेशनशिप में शादीशुदा पार्टनर, क्या है कानूनी स्थिति? जानिये….

7 जून 2024 को मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट का कहना है कि अगर पार्टनरों में से कोई पहले से शादीशुदा है, तो ऐसी लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती.

जस्टिस आरएमटी टीका रामन ने यह फैसला पी जयचंद्रन नाम की एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई करते हुए सुनाया था. जयचंद्रन एक महिला मार्गरेट अरुलमोझी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे. लेकिन जयचंद्रन पहले से ही शादीशुदा थे और उनकी पत्नी से 5 बच्चे भी थे. हालांकि दोनों अलग रहते थे, लेकिन कानूनी रूप से उनका तलाक नहीं हुआ था.

इस दौरान जयचंद्रन और अरुलमोझी ने मिलकर एक घर खरीदा और उसे रजिस्ट्री कराते वक्त अरुलमोझी के नाम पर करवा दिया. 2013 में अरुलमोझी की मृत्यु हो गई. इसके बाद जयचंद्रन ने एकतरफा फैसला लेते हुए उस सेटलमेंट डीड को रद्द करवा दिया और पूरा घर अपने नाम लेना चाहा.

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लेकिन अरुलमोझी के पिता ने भी संपत्ति पर दावा किया और ट्रायल कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. इसके बाद जयचंद्रन हाईकोर्ट पहुंचे. उनकी दलील थी कि वह और अरुलमोझी भले ही शादीशुदा नहीं थे, लेकिन पति-पत्नी की तरह रहते थे. इसलिए अरुलमोझी की मृत्यु के बाद उन्हें संपत्ति का हक मिलना चाहिए.

Live-in Relationship with a Married Partner
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लेकिन जस्टिस टीका रामन ने अपने फैसले में कहा कि जब तक जयचंद्रन का अपनी पत्नी से legal divorce नहीं हो जाता, तब तक उनकी अरुलमोझी के साथ ” कथित लिव-इन रिलेशनशिप” को “पति-पत्नी का कानूनी दर्जा” नहीं दिया जा सकता.

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कोर्ट ने कहा कि “इस मामले में, अपीलकर्ता (जयचंद्रन) की स्थिति यह है कि उन्होंने अरुलमोझी (अब मृत) के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया, यह जानते हुए कि वह एक शादीशुदा व्यक्ति हैं और उनकी पत्नी और पांच बच्चे हैं. अगर कोई पुरुष और महिला को पति-पत्नी के रूप में रहने का प्रमाण मिलता है, तो कानून यह मानता है कि वे वैध विवाह के कारण साथ रह रहे हैं, लेकिन यह इस मामले में लागू नहीं होता. इसलिए, जयचंद्रन और अरुलमोझी (अब मृत) के बीच का रिश्ता विवाह जैसा रिश्ता नहीं था और उस शख्स का दर्जा रखैल का है. एक “रखैल” “विवाह के स्वरूप” में रिश्ता नहीं रख सकती क्योंकि ऐसा रिश्ता खास और एकांगी नहीं होगा और इसलिए वह विवाह के स्वरूप में कोई रिश्ता नहीं बना सकता.”

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा लेकिन चूंकि अरुलमोझी के पिता की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो गई थी, इसलिए हाईकोर्ट ने कहा कि उनके कानूनी उत्तराधिकारी संपत्ति के हकदार हैं.

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